शायरी
Tuesday, February 26, 2013
मेरी किस्मत में तू नहीं है,
फिर क्यूँ तेरी ये आस है।
है तू मीलों दूर मुझसे,
फिर भी लगती क्यूँ तू पास है।।
हज़ारों ख्वाहिशें थी उसे पाने की,
कभी न की परवाह इस ज़माने की।
पर वो न समझ पाई प्यार मेरा कभी,
क्योंकि उसे आदत थी नए दोस्त बनाने की।।
तेरा वो मुस्कुराना, तेरा वो शरमाना।
याद आता है बहुत तेरा वो रूठ जाना,
तेरा वो रोना मेरा वो मनाना,
याद आता है बहुत गुज़रा वो ज़माना।।
Monday, October 15, 2012
"ओ दिन नी औणे"
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।
सबणा सुनाया " थर्स्टी क्रो ",
कन्ने अस्सां घस्से खाए थे।।
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।
"घाटा" रे स्कूला पढ़ना गए ता,
मत्ते सारे नौएं दोस्त बनाये थे।
मुनियाँ भी बड़ी छेल थीआँ ,
जिन्हां पर आसां रे दिल आये थे।।
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।
स्यों आंदियाँ थी हमेशा फर्स्ट,
अस्सां फेलियारां च छाये थे,
अस्सां जो बणा थे रोज़ ही मुर्गा,
कदी नी तिन्हाँ गे कान पकड्वाए थे।।
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।
घरा वालेयाँ फ्यूचर बारे सोचेया,
तांही कांगड़े पॉली छड्डी आये थे।
तीथी ता लगे होर भी मजे,
स्कूला छड्डी कोलजा जे चली आये थे।।
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।
कालजा छड्डी जे आये ता,
सारा ही मज़ा गवाई आये थे।
ओ दोस्त मीलदे भी नी हुण ,
जिन्हा सोगी पहले पेग लगाये थे।।
ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां बिताये थे।।
जेह्ड़े स्कूला ........................।
-संतोष कुमार सकलानी।
Thursday, May 24, 2012
कभी वो कहते थे.........
रास्ता भी तू ही है,
मंजिल भी तू ही हैं।
सागर भी तू ही है ,
साहिल भी तू ही है।
पर आज आलम यूँ हो गया है......कि
न यहाँ तू है,न मैं यहाँ हूँ।
शायद में तेरे दिल में हूँ,चाहे जहाँ हूँ।
पर घुट-घुट कर जी रहा हूँ,
न जाने मैं अब कहाँ हूँ।
खुदा से करता हूँ यही दुआ कि .......
हो गया है उसे निहारे इक अरसा,
अब जुदाई में नहीं जाता और तडपा,
ऐ -खुदा कुछ यूँ अपनी रहमतें बरसा
मिला दे मुझे उस से अब और न तरसा।
लेखक :-
संतोष कुमार "सकलानी"
Thursday, November 24, 2011
कभी
उनसे
अपनी
ज़िन्दगी
,
कभी
मौत
की
सजा
मांगते
हैं
कभी
माँगते
हैं
ज़हर
उनसे
,
कभी
साथ
जीने
की
रज़ा
मांगते
हैं॥
कभी खुद उनकी ज़िन्दगी बन जाते हैं,
कभी पास कभी दूर चले जाते हैं।
कभी मांगते हैं ज़हर उनसे,
और वो ज़िन्दगी बन रगों में बस जाते हैं॥
न है ख़वाहिश महलों की,
तेरे दिल में थोड़ी सी जगह मांगते हैं।
कहते हैं न जी पाएंगे तनहा मेरे बिन,
फिर साथ जीने की वजह मांगते हैं॥
Saturday, September 24, 2011
माँ
माँ तेरे गुस्से में भी प्यार नज़र आये,
माँ तेरे चहरे में भागवान नज़र आये,
तू न होती माँ तो मेरा क्या वजूद होता,
तेरी मुस्कान के लिए माँ "संतोष" बिक जाए।
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)