Monday, October 15, 2012

"ओ दिन नी औणे"

ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।
सबणा सुनाया " थर्स्टी  क्रो ",
कन्ने अस्सां घस्से खाए थे।। 


ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।



"घाटा" रे स्कूला पढ़ना  गए ता,
मत्ते  सारे नौएं दोस्त बनाये थे।
मुनियाँ भी बड़ी छेल थीआँ  ,
जिन्हां पर आसां रे दिल आये थे।।


ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।



स्यों आंदियाँ  थी हमेशा फर्स्ट,
अस्सां फेलियारां च छाये थे,
अस्सां जो बणा थे रोज़ ही मुर्गा,
कदी नी तिन्हाँ  गे कान पकड्वाए थे।।


ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।



घरा वालेयाँ फ्यूचर बारे सोचेया,
तांही कांगड़े पॉली छड्डी  आये थे।
तीथी ता लगे होर भी मजे,
स्कूला छड्डी कोलजा जे चली आये थे।।


ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।



कालजा छड्डी जे आये ता,
सारा ही मज़ा गवाई आये थे।
ओ दोस्त मीलदे भी नी हुण ,
जिन्हा सोगी पहले पेग लगाये थे।।


ओ दिन नी औणे मुड़ी कन्ने ,
जेह्ड़े स्कूला असां  बिताये थे।।
जेह्ड़े स्कूला ........................। 

                                                                                                -संतोष कुमार सकलानी।