Saturday, September 24, 2011

माँ

माँ तेरे गुस्से में भी प्यार नज़र आये,
माँ तेरे चहरे में भागवान नज़र आये,
तू न होती माँ तो मेरा क्या वजूद होता,
तेरी मुस्कान के लिए माँ "संतोष" बिक जाए।

Thursday, September 22, 2011

आस

आस लगाये बैठा हूँ आपके आने की, 
इक अरसे बाद आपको गले लगाने की,
अकेला बैठ कर सोचता रहता हूँ तुम्हारे बारे,
पत्ते-पत्ते छान लीये चीज़ों की घर की हमारे,
आस है उसमे से कुछ तुम्हारी यादों के मिल जाने की,
आस है बांहों में तुम्हारी मर जाने की,

जी चाहता है कंधे पे सर रख कर तुम्हारे सो जाऊं,
दुनिया को भुलाकर तुम्हारी बाँहों  में कहीं खो जाऊं,
चंद दीनो की बात है,आस बढ़ रही है तुम्हारे पास आने की,
गर सांस ठहर गयी, तो अधूरी रह जायेगी आस तुम्हे पाने की,

यह आस भी बड़ी अजीब होती है,
ताउम्र छोड़ती नहीं पीछा ऐसी चीज़ होती है,
आस है अब इस तूफान के ठहर जाने की,
आस है अब इस आशियाने के बच जाने की,

"जो" बीत गयी उसे भुला देना चाहता हूँ ,
तुम्हारे साथ इक नयी ज़िन्दगी चलाना चाहता हूँ,
आस लगाये बैठा हूँ आपके मान जाने की,
सब कुछ भुलाकर मेरे  पास आने की,

आस लगाये  बैठा हूँ आपके आने की, 
इक अरसे बाद आपको गले लगाने की,
आस....................



 लेखक :- संतोष कुमार सकलानी                                                                                                         

Wednesday, September 21, 2011

अकेले बहुत हम है

वो कहते थे कि तुम्हारे हम हैं, पर पास हमारे अब गम ही गम हैं,
हमारी जान बनकर आये थे वो पास हमारे,पर अकेले अब हम हैं,
वो चले गए दूर हमसे, नीकाल कर जान हमारी,
उनके बिन बेजान हम हैं, उनके बिन अकेले बहुत हम है,

जिन्होंने सीखाया था प्यार करना हमे, उनके प्यार ससे महरूम हम हैं,
वो कह कर चल दिए कि तुम अपने रास्ते जाओ, अपने रास्ते हम हैं,
अब चले भी आओ और न तडपाओ सच कहते हैं, मर जायेंगे !
कि मजबूर बहुत हम हैं, उनके बिन अकेले बहुत हम हैं,


खुद ही मांग ली खुदा से ऐसी दुआ, कि इस कदर अकेले हम हैं,
असर इस कदर हुआ दूया हमारी का, खाली हाथ हम है,
कुछ नहीं रहा पास हमारे,चंद यादों के सीवा,
खुशनसीब थे वो साथ बिठाये पल, पर आज अकेले हम हैं,
उनके बिन अकेले बहुत हम हैं....................!!!!!!!!!!!!!

                                                  

Monday, September 19, 2011

असर इस कदर दुआ हमारी कर गयी

असर इस कदर दुआ हमारी कर गयी,
कि उन्हें हमसे मिलाया और जुदा भी कर गयी,
कभी सोचा न था ऐसा भी हो सकता है प्यार में,
शायद इसलिए वो गलती कि सजा भी अदा कर गयी,

मिलकर आते थे रोज़ ख्वाबों में उनसे,
चुनकर लिखते थे कुछ पल यादों से उनके,
पर आज कम्बखत याद भी हमसे दगा कर गयी,
ऐसी वो गलती कि सजा अदा कर गयी,

हमें तो ऐसा किस्मत ने मारा है,
के न डूबते हैं न तैर पाते हैं,
ऊपर से दुआ मुक़र्रर ऐसी सजा कर गयी,
कि उन्हें हमसे दूर और खफा कर गयी,

ऐ खुदा एक दुआ हमारी और कबूल कर दो,
"सकलानी " कि जिंदगी का ख़तम यंही फलसफा कर दो,
रोते हैं अकेले मैं बैठकर हम आज भी,
इनाम हमे वफ़ा हमारी ये अदा कर गयी,
उन्हें हमसे दूर और खफा कर गयी,
ऐसी वो गलती कि सजा अदा कर गयी,
                                     लेखक :-  संतोष कुमार सकलानी