शायरी
Tuesday, February 26, 2013
हज़ारों ख्वाहिशें थी उसे पाने की,
कभी न की परवाह इस ज़माने की।
पर वो न समझ पाई प्यार मेरा कभी,
क्योंकि उसे आदत थी नए दोस्त बनाने की।।
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